View Abstractस्वाभाविक मानवीय जीवन को त्यागने और सभ्य बनने का ढोंग करते-करते मनुष्य वस्तुओं से आगे बढ़कर इंसानों की खरीद-फरोख्त में पूरी तरह से रम चुका है। उसके लिए इंसान और वस्तु में कोई फर्क नहीं रह गया है। आए दिन अखबारों के पन्ने मानव तस्करी की खबरों से भरे होते हैं। फिर भी ध्यान की बजाय उपेक्षा की श्रेणी में इनकी संख्या ज्यादा बढ़ रही है। आज यह समस्या पूरे विश्व को अपने चंगुल में जकड़ चुकी है। इस खरीद बेच का उद्देश्य शारीरिक शोषण, अंग निष्कासन, जबरन विवाह, बंधुआ मजदूरी आदि अपराध होते हैं। वर्ष 2017 में राजस्थान राज्य में ईंट भट्ठा कामगारों के अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार और राजस्थान राज्यों के 40% से भी अधिक मौसमी कामगारों की भट्ठा मालिकों के प्रति देनदारी थी जो पूरे मौसम में कामगारों द्वारा अर्जित राशि से भी अधिक था। कुछ राज्यों में शोषणकारी ठेकेदारों जो बंधुआ मजदूरी में श्रमिकों को फंसा लेते थे। वे स्थानीय सरकारी अधिकारी अथवा राजनीतिक रूप से प्रभावशाली व्यक्ति हैं। कुछ मानव तस्करों ने बंधुआ मजदूरों के साथ गंभीर दुर्व्यवहार किया जिनमें वे लोग भी शामिल थे जिन्होंने अपनी वैध मजदूरी मांगी और कुछ बंधुआ मजदूरों की मानव तस्करों के कब्जे में मौत हो गई। मानव तस्कर 8 वर्ष की कम आयु के बच्चों का कृषि (नारियल, नील, अदरक और गन्ना) निर्माण घरों में काम करवाकर, परिधान, इस्पात और कपड़ा उद्योग (चर्मशोधन, चूड़ी और साड़ी बनाने वाली फैक्ट्रियां), भीख मांगना, अपराध करवाने, खाद्य प्रसंस्करण फैक्ट्रियों जैसे,( बिस्कुट, रोटी बनाने, मांस की पैकिंग करने और अचार बनाने, फूलों की खेती, कपास, जहाज का विखंडन करने और विनिर्माण ( तार और कांच) में जबरन मजदूरी करवाकर शोषण करते हैं।अनेक संगठनों ने पाया कि मानव तस्करी पीड़ितों के विरुद्ध शारीरिक हिंसा- बंधुआ मजदूरी और यौन मानव तस्करी दोनों रूपों में की गई जोकि भारत सहित विशेष रूप से दक्षिण एशिया में व्याप्त थी। भारतीय स्तर पर ज्यादातर इससे प्राभावित क्षेत्रों में बिहार, झारखंड,राजस्थान, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा आदिवासी बहुल राज्य रहें हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 व 24 इसके रोकथाम की बात करते हैं तो वहीं भारतीय दण्ड संहिता की धारा 370 व 370A मानव तस्करी के खतरे का मुकाबला करने हेतु व्यापक उपाय प्रदान करती है। धारा 372 व 373 वेश्यावृति के उद्देश्य से लड़कियों को बचाने व खरीदने से संबंधित है। IPTA(1956), POCSO आदि अधिनियमों की सक्रियता होने के बावजूद भी भारत अभी सुधार की स्थिति में कुछ बेहतर नहीं कर पाया है। यूनाइटेड स्टेट की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत को दूसरी श्रेणी में रखते हुए कहा गया है कि भारत तस्करी को खत्म करने के लिए न्यूनतम मांगों को पूरा नहीं कर पाया है जबकि इसे खत्म करने के लिए सरकार लगातार आवश्यक प्रयास करती रही। साथ ही जब बंधुआ मजदूरी की बात आती है तो यह प्रयास अपर्याप्त प्रतीत होते हैं। साहित्य की दुनिया ने भी इन समस्याओं पर अपनी दृष्टि फेरी हैं। यहां हम बात करेंगे आदिवासी क्षेत्रों में हो रही मानव तस्करी की घटनाओं के विषय में जिसके आधार में हैं वाल्टर भेंगरा तरुण की कहानी संगी, लसा, मक्कड़जाल, मंगल सिंह मुंडा की कहानी धोखा, रूपलाल बेदिया की कहानी अमावस्या की रात में भागजोगनी।